Thursday, February 24, 2011

तर्जुबा

तर्जुबा-ए-जिंदगी कुछ और नहीं दोस्तों
मासूमियत-ए-बचपन के खोने का नाम है .



अजय अमिताभ सुमन
उर्फ
बेनाम कोहड़ाबाज़ारी

बहता पानी

जीवन है दरिया एक , थम गए तो मर गए .
मैं सागर का पानी हूँ , बहना जानता हूँ .



अजय अमिताभ सुमन
उर्फ
बेनाम कोहड़ाबाज़ारी

अजनबी

क्यूँ आज भी हमारा , हमदम नहीं इस शहर में ,
ना पूछा किसी ने , ना हमसे बताया गया .




मुलाकातें होती रही , रिश्ते तो बनते रहे ,
ना किसी को थी जरूरत , ना हमसे निभाया गया .




दुनिया तेरे तरीकों ने , सताया बहुत हमें ,
समझ के नाकाबिल ना , हमको समझाया गया .




फासले बढते रहे , दिल-दिमागो के दरमियाँ ,
उलझनें सजती रहीं , ना हमसे सुलझाया गया .




बेनाम खुद से अजनबी हम , बन गए रफ्ता रफ्ता ,
रूठे जो खुद से खुद को , ना अब तक मनाया गया .




अजय अमिताभ सुमन
उर्फ
बेनाम कोहड़ाबाज़ारी

हुकूमत

मेरे नाम में अचानक, ये क्या सूझी है तुझको ,
बदनाम मैं बड़ा हूँ , दे दूँ तुझे मैं कैसे .


जिंदगी से मुझको करने है सवाल कई
तुझे चाहिए जवाब , दे दूँ तुझे मैं कैसे .


मेरी कहानी में क्या तुम मांगते हो हिस्सा
अंजाम ईक बुरा हूँ दे दूँ तुझे मैं कैसे.


ताउम्र बस ख्वाबों को टूटते ही देखा
तुम मांगते हो वादा, दे दूँ तुझे मैं कैसे.


तुम्ही कहो क्या अपना कहूँ कोई इरादा .
गम हैं बहुत ज्यादा, दे दूँ तुझे मैं कैसे


मेरे जीवन पे मुझको कोई नहीं भरोसा .
मेरी मौत पे हुकूमत दे दूँ तुझे मैं कैसे .




अजय अमिताभ सुमन
उर्फ
बेनाम कोहड़ाबाज़ारी

आखिर क्या रखा है नाम में

वो कहते हैं



नाम में रखा है क्या ?


आँख का अंधा नाम नयनसुख


रख ले भी तो क्या ?



कि नाम है किरोड़ीमल


पर पैसे को तरसते हैं .


देखो दीनदास हाथी पे


मौज कर चलते हैं .



पर पूछते है मुझसे वो


कहता जो रावण उनको .


कि कौन सी मैं दुश्मनी


रहा हूँ निभा ?




अजय अमिताभ सुमन


उर्फ


बेनाम कोहड़ाबाज़ारी