Monday, February 28, 2011

जय हो


























जय हो , जय हो
नितीश तुम्हारी जय हो .
जय हो एक नवल बिहार की .
सुनियोजित विचार की .
और सशक्त सरकार की .
कि तेरा भाग्य उदय हो .
तेरी जय हो .


जाति-पाति पोषण के साधन
कहाँ होते ?
धर्मं आदि से पेट नहीं
भरा करते .


जाति पाति की बात करेंगे जो
मुह की खायेंगें .
काम करेंगे वही यहाँ
टिक पाएंगे .


विकास विकास और विकास
संकल्प सही तुम्हारा है .
शिक्षा और सुशासन चहुँ ओर
तुम्हारा नारा है .


हर गांव नगर घर और डगर डगर
हर रात दिन वर्ष और हर पहर
नितीश तुम्हारा यही सही है एक विचार
हो उर्जा का समुचित सुनियोजित संचार


रात घनेरी बीती
सबेरा आया है .
जन-गण मन में व्याप्त
नितीश का साया है .


गौतमबुद्ध की धरा
इस पावन संसार में .
लौट आया सम्मान
शब्द बिहार में .


हर गली गली में जोश
उमंग अब छाया है .
बलरहित बाहुबली
मलीन कान्त काया है .


है विश्वास नितीश भारत को
सबक सिखाओगे .
है विकास मंत्र जनतंत्र की
पाठ पढ़ाओगे.


है बात दिले बेनाम
काश ये हो पाता.
भारत को भी एक नितीश
गर मिल पाता.


फिर जाति –पाति करने वाले
मिट जायेंगे .
धर्मं आदि के जोंक कहाँ
टिक पाएंगे .


फिर भारत का परचम
चहुँ ओर लहराएगा .
आर्यावर्त का नाम
धरा पे छाएगा .


भारत को भी अब
नितीश की तलाश है .
सुधर नेता ही इस
देश कि आस है .


कुत्सित राजनीतिज्ञों का
बेनाम क्षय हो .
भारत तेरी शक्ति बढे
आसिमित अक्षय हो .
राष्ट्र को कोटि कोटि नमन
तेरी विजय हो .
तेरी जय हो, तेरी जय हो.






अजय अमिताभ सुमन
उर्फ
बेनाम कोहड़ाबाज़ारी

Saturday, February 26, 2011

जीने की राह


जीने की चाह जब साथ छोड़ जाती है .
जिंदगी अक्सर नई राह दिखा जाती है .








अजय अमिताभ सुमन
उर्फ
बेनाम कोहड़ाबाज़ारी

Thursday, February 24, 2011

तर्जुबा

तर्जुबा-ए-जिंदगी कुछ और नहीं दोस्तों
मासूमियत-ए-बचपन के खोने का नाम है .



अजय अमिताभ सुमन
उर्फ
बेनाम कोहड़ाबाज़ारी

बहता पानी

जीवन है दरिया एक , थम गए तो मर गए .
मैं सागर का पानी हूँ , बहना जानता हूँ .



अजय अमिताभ सुमन
उर्फ
बेनाम कोहड़ाबाज़ारी

अजनबी

क्यूँ आज भी हमारा , हमदम नहीं इस शहर में ,
ना पूछा किसी ने , ना हमसे बताया गया .




मुलाकातें होती रही , रिश्ते तो बनते रहे ,
ना किसी को थी जरूरत , ना हमसे निभाया गया .




दुनिया तेरे तरीकों ने , सताया बहुत हमें ,
समझ के नाकाबिल ना , हमको समझाया गया .




फासले बढते रहे , दिल-दिमागो के दरमियाँ ,
उलझनें सजती रहीं , ना हमसे सुलझाया गया .




बेनाम खुद से अजनबी हम , बन गए रफ्ता रफ्ता ,
रूठे जो खुद से खुद को , ना अब तक मनाया गया .




अजय अमिताभ सुमन
उर्फ
बेनाम कोहड़ाबाज़ारी

हुकूमत

मेरे नाम में अचानक, ये क्या सूझी है तुझको ,
बदनाम मैं बड़ा हूँ , दे दूँ तुझे मैं कैसे .


जिंदगी से मुझको करने है सवाल कई
तुझे चाहिए जवाब , दे दूँ तुझे मैं कैसे .


मेरी कहानी में क्या तुम मांगते हो हिस्सा
अंजाम ईक बुरा हूँ दे दूँ तुझे मैं कैसे.


ताउम्र बस ख्वाबों को टूटते ही देखा
तुम मांगते हो वादा, दे दूँ तुझे मैं कैसे.


तुम्ही कहो क्या अपना कहूँ कोई इरादा .
गम हैं बहुत ज्यादा, दे दूँ तुझे मैं कैसे


मेरे जीवन पे मुझको कोई नहीं भरोसा .
मेरी मौत पे हुकूमत दे दूँ तुझे मैं कैसे .




अजय अमिताभ सुमन
उर्फ
बेनाम कोहड़ाबाज़ारी

आखिर क्या रखा है नाम में

वो कहते हैं



नाम में रखा है क्या ?


आँख का अंधा नाम नयनसुख


रख ले भी तो क्या ?



कि नाम है किरोड़ीमल


पर पैसे को तरसते हैं .


देखो दीनदास हाथी पे


मौज कर चलते हैं .



पर पूछते है मुझसे वो


कहता जो रावण उनको .


कि कौन सी मैं दुश्मनी


रहा हूँ निभा ?




अजय अमिताभ सुमन


उर्फ


बेनाम कोहड़ाबाज़ारी