Monday, May 30, 2011

ज्ञान चक्षु



जो देखता है आदमी

वो बन जाता है आदमी.


क्योंकि आदमी जो देखता है
आदमी वो सोचता है.


आदमी जो सोचता है
आदमी वो बोलता है.


आदमी जो बोलता है
आदमी वो करता है.

और आदमी जो करता है
वो ही आदमी बन जाता है.


गर आँखें विकार संपोषक
विकसित हो अनगिनत द्वन्द.

सरल जीवन का मंत्र मूल एक
ज्ञान चक्षु - दर्शन होशमंद.




अजय अमिताभ सुमन
उर्फ
बेनाम कोहड़ाबाज़ारी

Monday, May 16, 2011

प्रभु दर्शन




















इन आँखों का दर्शन कैसा

देह अगन नयनों पे भारी.
इन कानों का श्रवण कैसा
मनोरंजन  कानों    पे हावी.

चरण   स्पर्श करूँ मैं कैसे
वसनयुक्त   कर  स्पन्दन.
इर्ष्याग्रस्त है मेरी जिह्वा
कैसे   करूं    मैं प्रभु नमन.

तेरे    वास     को     पहचानू   मैं
नहीं घ्राण मेरी ऐसी विकसित.
चाह    अनंत    मन   भागे पीछे
बोध   दोष    व्यसनों से ग्रसित.

राह   मेरा   पर  बाधा प्रभु
मन का रचा हुआ संसार.
पथिक मैं और मंजिल तू
जाऊं   कैसे   मन    के पार.

मन   मेरा    संसार   प्रक्षेपित
नमन,कथन,वचन अस्वस्थ.
चाह “बेनाम” दर्शन हो तेरा
प्रभु   बिन    इन्द्रिय     अस्त्र.


अजय अमिताभ सुमन
उर्फ
बेनाम कोहड़ाबाज़ारी









Monday, May 2, 2011

अस्तित्व ईश्वर का



हमारा अस्तित्व

ईश्वर के अस्तित्व से
कोई अस्तित्व नहीं रखता
क्योंकि
ईश्वर का कोई अस्तित्व नहीं होता
बल्कि
अस्तित्व ही ईश्वर है.



अजय अमिताभ सुमन
उर्फ
बेनाम कोहड़ाबाज़ारी