Thursday, January 8, 2009

सवालात

यहाँ कत्ल नही देखते , देखे जाते इरादे।
कानून की किताबों के , अल्फाज ही कुछ ऐसे हैं ।


बेखौफ घुमती है , कातिल तो मैं भी क्या करुँ ।
अदालत की जुबानी , बयानात ही कुछ ऐसे हैं ।

हर तारीख दर तारीख पे , देते हैं तारीख बस।
इंसाफ के रखवालों के , सौगात हीं कुछ ऐसे हैं ।

हम आह भी भरते है , तो ठोकती है जुरमाना।
इस देश की कानून के , खैरात ही कुछ ऐसे है।

फाइलों पे धुल पड़ी , चाटती हैं दीमक ।
कानून के रखवालों के , तहकीकात ही कुछ ऐसे है।

उछालते हैं शौक से , हर एक के जनाजे को ।
शहर के रखवालों के , जज्बात ही कुछ ऐसे हैं ।

आते हैं फैसले फरियादी की मौत के बाद ।
की फैसलेदारों के , इन्साफ ही कुछ ऐसे हैं ।

फरियाद अपनी लेके , बेनाम अब जाए किधर ।
अल्लाह भी बेजुबां है , सवालात हीं कुछ ऐसे हैं ।


बेनाम कोहडाबाजारी
उर्फ़
अजय अमिताभ सुमन

फितरत

जाके कोई क्या पूछे भी , आदमियत के रास्ते ।
क्या पता किन किन हालातों से गुजरता आदमी ।

चुने किसको हसरतों , जरूरतों के दरमियाँ ।
एक को कसता है तो , दूजे से पिसता आदमी ।

चलता कहाँ जोर ख़ुद की , आदतों पे आदमी का ।
कसने की कोशिश बहुत है , और बिखरता आदमी ।

गलतियाँ करना है फितरत , करता है आदतन ।
और सबक ये सीखना , कि दोहराता है आदमी ।

आदमी है एक प्यासा , और जीवन एक मरुभूमि ।
की दीखता है नीर उसको , पर तरसता आदमी ।

झूठे सच्चे ख्वाबों का , एक पुलिंदा महज है ये ।
एक से बिखरता है , दूजा संवारता आदमी ।

मानता है ख्वाब दुनिया , जानता है ख्वाब दुनिया ।
और टूटे फूटे ख्वाबों का , हिसाब करता आदमी ।

सपने रेतों के जैसे , हाथ से निकले बहुत जो ।
दूर फिसलते रहे , और पकड़ता आदमी ।

आदमी की हसरतों का , क्या बताऊँ दास्ताँ।
आग में जल खाक बनकर , राख मांगे आदमी ।

बेनाम कोहडाबाजारी

उर्फ़
अजय अमिताभ सुमन