Wednesday, January 4, 2012

गीता ने आबाद किया भारत को, न कि बर्बाद


हाल में ही मैंने नवभारत टाईम्स पर हमारे एक लेखक बंधू का गीता के बारे में विचार पढ़ा जिसमे उन्होंने गीता को भारत के बर्बादी के कारण नामक विशेषण से अलंकृत (नहीं कलंकित ) किया है . उनके इस विचार धारा पर पर मुझे संस्कृत का एक एक श्लोक याद आता है , जिसे मैंने अपने बचपन पे पढ़ा था .वो  श्लोक कुछ ऐसे है ,



लभेत सिकतासु तैलमपि यत्नतः पीडयन्
पिबेच्च मृगतृष्णिकासु सलिलं पिपासर्दितः ॥

कदाचिदपि पर्यटन् शशविषाणमासादयेत्

न तु प्रतिनिविष्टमूर्खजनचित्तमाराधयेत् ॥



यानी प्रयास करके रेत पीसकर तेल निकला जा सकता है . एक प्यासे आदमी को मृग मरीचिका में पानी मिल सकता है . इधर उधार घूमते हुए एक आदमी को खरगोश के सिंग मिल सकते है . लेकिन एक पढ़े लिखे जिद्दी मुर्ख को समझाया नहीं जा सकता .



अ़ब ये समझ में आ रहा है कि ये श्लोक किस सन्दर्भ में लिखा गया है. गीता को समझने के लिए अर्जुन जैसा प्रश्न पूछने वाला मन और कृष्णा सा उचाई रखने वाला गुरु होना चाहिए . सूरज तो रोज ही सफ़ेद रोशनी लेकर आता है , लेकिन अगर कोई  काला चश्मा पहन कर बोले कि सूरज की रोशनी काली है तो इसमें दोष किसका है:- सूरज का या कि चश्मे का .



गीता ने कभी नहीं सिखाया की आदमी को अपने रिश्ते से अधिक अहमियत धन दौलत को देना चाहिए . गीता ने कभी संघर्ष को , लड़ाई- झगड़े को बढ़ावा नहीं दिया . लानत है मेरे लेखक बंधू की ऐसी सोच पर जो अपने आपको अध्यात्मिक कहते हुए गीता से ये सीख लेते है . मेरे लेखक मित्र की ये विचार धारा इस बात को साबित करती है ,



“अधजल गगरी छलकत जाय” .



गीता ने अर्जुन को कर्म प्रधान होने को बात कही . जब अर्जुन इस बात को लेकर असमंजस में पड़ गया की वो अपने गुरु , भाई , दादा आदि से राज्य की प्राप्ति हेतू युध्ह क्यों करे . इन परीस्थितियों में कृष्ण ने अर्जुन को कर्म की प्रेरणा दी . गीता अच्छे उद्देश्य के निमित् संघर्ष करने की प्रेरणा देती है , न की बुराई के हेतू .



महाभारत में दुर्योधन अधर्म का प्रतीक था . धर्मं की ध्वजा फहराने के लिए दुर्योधन को हराना जरुरी था . अधर्म के खिलाफ आवाज कदापि गलत नहीं . अधर्म के खिलाफ आवाज बुलंद नहीं करना कायरता है . ये गीता कि ही प्रेरणा है कि जब जब विदेशी आक्रमणकारियों ने भारत की धरा को गुलाम बनाने की कोशिश की , ये गीता का कर्मवाद ही था जिसने भारत को आज़ादी के लिए संघर्ष करना सिखाया . महात्मा गाँधी , आचार्य विनोबा भावे , स्वामी विवेकानंद आदि ने गीता के परचम को दुनिया में फहराया.और तो और लियो टोल्सटॉय का गीता प्रेम जग जाहिर है . गीता को हमारे लेखक बंधू से सर्टिफिकेट की कोई जरूरत नहीं है .



गीता तो अथाह सागर है ज्ञान का . गीता ना केवल कर्मवाद की बात करती है , बल्कि इसमें भगवान की प्राप्ति के सारे साधन सुझाये गएँ हैं . गीता भक्तिमार्ग की भी बात करती है , तो योगमार्ग और ज्ञानमार्ग की . भारत को इस बात का गर्व है की गीता जैसी घटना यहाँ पे घटी है . मेरे मित्र को इस बात का भी शुक्रगुजार होना  चाहिए हिंदुस्तान का कि गीता पर ऐसी लेख लिखने कि  पूर्ण आज़ादी है . अपने लेखक मित्र से मैं अपेक्षा करूँगा की मेरी कुछ बातें प्रतिक्रियाजन्य है जो आवेश में कही गयीं है , अतः उसे अन्यथा न ले . अगर वो गीता के कर्मवाद को समझ पाने में असक्षम हैं , तो भी इस बात की उम्मीद है कि गीता को कलंकित करनी वाली ऐसी बातें लिखने से पहले गीता में सुझाये गए भक्तिमार्ग , ज्ञानमार्ग और योगमार्ग पर भी गौर फरमाएँगे . आशा है गीता के बारे में मेरे लेखक मित्र और उनके जैसे सोच रखने वाले लोग गीता को बेहतर ढंग से समझ पाएंगे और गर्व के कहेंगे : 



कि गीता ने भारत को बर्बाद नहीं अपितु आबाद किया है .



अजय अमिताभ सुमन

उर्फ

बेनाम कोहड़ाबाज़ारी