Saturday, April 30, 2011

हद




लोगों की नासमझी का उठाने भी दो फायदा,

 “बेनाम” शराफत जताने की भी हद है .


वो नाराज हैं कि आसमाँ से तोड़ा नहीं चाँद को,
समझा दे कोई आशिकी निभाने की भी हद है ,


तेरे कहने से पी तो लूँ, पर बहकने की हद तक ,
बता दे कोई दोस्ती बनाने की भी हद है .


कहने से डरता हूँ मैं , चुप रहकर मरता हूँ मैं
मोहब्बत में इस कदर , फसाने की भी हद है .


ये आपका ही प्यार है कि जिन्दा मैं अबतलक
अब मर के यूं ईश्क को बताने की भी हद है


छत की जद्दोह्द में , कब्र तो नसीब की
खुदा तेरा यूं रहमत बरसाने की भी हद है


अजय अमिताभ सुमन

उर्फ
बेनाम कोहड़ाबाज़ारी