Tuesday, March 29, 2011

तिलक सबके हरान करता





























शेर: नाच बाजा फैशन वाली शादी बरबाद करे .

लईका लईकी दुनू के घर के नाश करे .
“आशावादी” कहे एलान रउआ सुन लीं .
सामाजोध्हार संघ ई कुपरथा के विनाश करे.


गीत: सामाजोध्हार संघ सगरो एलान करता .
तिलक दान दहेज सबके हरान करता .

कईसन सुंदर चीज ह शादी , तिलक कर देता बर्बादी .
जबरन दान दहेज वसुलाला, पईसा पानी में बह जला .
लईकी वाला के तिलकअ परेशान करता .
तिलक दान दहेज सबके हरान करता .

आदमी केतनो होखे खोटा , शादी रुपिये से तय होता .
तिलक बन गईल बा शान , जाता लईकी सन के जान .
नाच बाजा वाली शदिया नुकसान करता .
तिलक दान दहेज सबके हरान करता .


शदिया के अवसर आवे , लईकी वाला रोवे गावे .
बाकि सब कुछ उ भूल जाला ,लईका वाला जब हो जाला.
उहे लईका के शादी में गुमान करता .
तिलक दान दहेज सबके हरान करता .


“आशावादी” कहे गाई , तनी सोचअ बहिन भाई
घर घर कर तू परचार , तिलक रही न आधार .
कि तिलक बनके शैतान , परेशान करता .
तिलक दान दहेज सबके हरान करता .


श्रीनाथ आशावादी


Friday, March 25, 2011

बुजुर्गों की होली

















बुजुर्गों     के      संग

धुले मन का उमंग .
खेलो     होली    ऐसे
जैसे    कोई सत्संग .


जैसे    कोई       सत्संग
कि अबीर ही है आस.
डालो   संभल   के जरा
दुःख    रही     है नाक.


दुःख       रही      है   नाक
कि    करो     बस   प्रणाम .
रंग को    तो    दूर से ही
राम राम भाई राम राम .




अजय अमिताभ सुमन
उर्फ
बेनाम कोहड़ाबाज़ारी

Thursday, March 24, 2011

जवानों की होली






















जवानों      के     संग

मचे   मस्ती   का रंग
धर      पकड़     यहाँ
वहाँ      भी     हुरदंग


वहाँ   भी   हुरदंग   है
जवानों   की     आग
पानी   पड़े ज्यों ज्यों
ये बढ़ती जाती प्यास


बढ़ती  जाती   प्यास
कि जवानों   के संग
डालो   रंग   गोरी के
पकड़    अंग    अंग




अजय अमिताभ सुमन
उर्फ
बेनाम कोहड़ाबाज़ारी

Wednesday, March 23, 2011

बच्चों की होली

                                             
बच्चों के संग

होली एक जंग
देखो बचे कोई नहीं
बिन खेले रंग .

दौड़े धूपे बच्चे सब
फेकें पिचकारी
और बच्चों के आगे
तो चाची भी हारी .


चाची भी हारी कि
जोश है खरोश है
नटखटपन पे बच्चों के
जमाना मदहोश है .




अजय अमिताभ सुमन
उर्फ
बेनाम कोहड़ाबाज़ारी








Tuesday, March 22, 2011

जनम जनम का साथी



बस एक बार मेरा कहा मान लीजिये.
इस अंजुमन आना है आपको मेरे पास.
मरते दम  छूटेगा ना तेरा  मेरा साथ.
दीवारों दर को जरा पहचान लीजिये.
बस एक बार मेरा कहा मान लीजिये.



अजय अमिताभ सुमन
उर्फ़
बेनाम कोहड़ाबाजारी 








Friday, March 18, 2011

उड़ान





चूल्हा  चौकी   व  बरतन     थाली

रोटी चावल औ  चाय की प्याली.
बचपन   का    बदलो   रुख थोड़ा
दे दो     इनसे     इन्हें  आज़ादी.

बेटी का मतलब कुछ समझो
नहीं   ध्येय   बस इनकी शादी.
ला बैठा   रख    दो घर में कि 
इनसे    बढ़ती     रहे    आबादी.


पर  इनके    न      कतरो   ऐसे
खुले गगन को है पर    आतूर
तोड़ समाज के पिंजर    बंधन
नाप अम्बर लेने को  व्याकुल.


खुदा नहीं करता कोई अंतर
भेद     भाव     मत     होने दो.
बेटा     बेटी     हैं    एक बराबर  
उड़ान  इन्हें   भी   भडने     दो.


अजय अमिताभ सुमन
उर्फ
बेनाम कोहड़ाबाज़ारी






Wednesday, March 16, 2011

दहेज के दानव













मैं एक बूढा हूँ रंजो गम का दामन हर दम सहता हूँ .

किसी के घर ना हो बेटी यही मौला से कहता हूँ .


मेरा आँगन था सुना पड़ा मुद्दत से उदासी थी
थी सुबह हर बंजर मेरी हर शाम बासी थी .


बड़ी मिन्नतें की घर में मैंने उजाले के वास्ते .
पीर , बाबा को गया , मौला के रास्ते .

बड़ी ख्वाहिशों के बाद मेरी बगिया भी चहकी थी .
खुदा तुमने बूढ़े के दामन में औलाद बख्शी थी .


हर सुबह की किरण नई पैगाम लाती थी .
मेरी बेटी आँगन में जब खिलखिलाती थी .


खुदा मेरे मुझे इस बात का बड़ा अफ़सोस था .
मेरी डाट से डरती थी इस बात का रोष था .


मेरी बेगम से ही वो खोलती थी ख्वाहिशों कि बात
सहमी बड़ी रहती थी मुझसे , था बुरा एहसास .


उम्र बेटी की मेरी ज्यों बढ़ती जाती थी .
ब्याह की चिंता मुझे मौला सताती थी .


साईकिल लेके बूढा मैं हर गली दर घुमा .
सुनकर दहेज की बात सर मेरा घुमा .


महीने भर जला के खून अपना जो पाता हूँ .
हज़ार सात रूपये में तो घर चलाता हूँ .


चपरासी मैं लाख रूपये कहाँ से लाता ?
सोच के ये बात मेरा , दिल था घबडाता .


दिन मेरे गुजर रहे थे मिन्नतें करते .
आस थी शायद किसी का भी दिल पिघले .


देख के मेरा यूँ झुकना औरों के सामने .
पूछती बेटी मेरी क्या जुर्म की थी बाप ने ?


फिर जुर्म से बाप को आजाद कर दिया .
मेरी बेटी ने आग में जल खाक कर दिया .


उसी आग को सिने मैं लेके दर दर जलता हूँ .
किसी के घर ना हो बेटी यही मौला से कहता हूँ .



अजय अमिताभ सुमन
उर्फ
बेनाम कोहड़ाबाज़ारी

घूँघट बीचे जरेली बहिनियाँ

घूँघट बीचे जरेली बहिनियाँ हमार हो

कहिया ले सहबु बहिन अईसन अत्याचार हो


टी.वी. मोटरसाईकिल खातिर लोग सब मरेला
फूल लेखां देहिया के तेल से जरावेला
सारा सुख छीनेला दहेज के बजार हो
घूँघट बीचे जरेली बहिनियाँ हमार हो


बेटिए के उजड़ेला घरवा दुअरवा
दुल्हन पर टूटेला विपति के पहाड़वा
गरभे में बेटिए के मरे संसार हो
घूँघट बीचे जरेली बहिनियाँ हमार हो


सोचअ बहिन सोचअ फुआ सोचअ बूढी माई
तहरे से भागी ई दहेजवा कसाई
झांसी के रानी बन ले ल अवतार हो
घूँघट बीचे जरेली बहिनियाँ हमार हो


“श्रीनाथ आशावादी” दरद सुनावेले
गऊंआ नगरिया में सबके बतावेले
जगीहें बहिनिया त होईहें उद्धार हो
घूँघट बीचे जरेली बहिनियाँ हमार हो




“श्रीनाथ आशावादी”




Tuesday, March 15, 2011

विडंबना





















वो एक बेटी है
बेटी होने का नहीं जोश है .



 और


बेटी जनमाने का
उसकी माँ को बड़ा रोष है


सच में


बेटी का बेटी
होने का अफ़सोस है .



अजय अमिताभ सुमन
उर्फ
बेनाम कोहड़ाबाज़ारी




























वो एक बेटी है

बेटी होने का नहीं जोश है .


और


बेटी जनमाने का
उसकी माँ को बड़ा रोष है


सच में


बेटी का बेटी
होने का अफ़सोस है .



अजय अमिताभ सुमन
उर्फ
बेनाम कोहड़ाबाज़ारी

Wednesday, March 9, 2011

नशा-ए–मंजिल





















 ख्वाहिश-ए-मंजिल है जायज़ बेनाम , मजा तो तब है .

लुत्फ़-ए सफर में असर हो , नशा-ए–मंजिल का .



अजय अमिताभ सुमन
उर्फ
बेनाम कोहड़ाबाज़ारी



Saturday, March 5, 2011

अनाम

























शर्माजी कहते है

पिंटू की माँ 
जरा पानी लाना .

पति कहते है ,
अजी सुनती हो ,
मोजा कहाँ है ?

पिंटू कहता है ,
मम्मी मुझे टॉफी दिला दो .

और पड़ोसी कहते है ,
शर्माजी की बहु शालीन है .


वो बहु है ,
पत्नी है ,
मां है .

वो अनाम है ,
उसका कोई अपना नाम नही .





अजय अमिताभ सुमन

उर्फ
बेनाम कोहड़ाबाज़ारी

निढाल


























पूछा शराबी से मैं



है गम तुझे किस बात का ,


डूबा हुआ है अब तक


तू किस ख्याल में .



ज़माने की चाल से


परेशां मैं उम्र भर ,


फसाँ हुआ था अबतक ,


मुश्किल जंजाल मैं .



ज़माने की बातें भी


कहाँ कभी सुलझी है ,


अपनी हीं बातों में


दुनियां ये उलझी है .



तलाशते तलाशते


जवाब इस दुनियाँ का ,


बन गया था अक्सर


खुद हीं सवाल मैं .



होश में भी होकर


क्या करती ये दुनियाँ ,


क्या कहती ये दुनियाँ


क्या सुनती ये दुनियाँ .



कभी औरों पे हँसती है


कभी अपनों पे रोती है


रहा इसके तरीकों से


मैं बवाल में.



कि होश में रहकर भी


करना क्या काम है ,


झूठी मुठी बातें हीं


करती आवाम हैं .



बेहोशी में यारों


मजा है जन्नत का .


छोड़ो भी फँसे हो क्यों


इस मायाजाल में .



तेरी बातें मेरे


समझ के नाकाबिल है ,


जाहिल से लोग मुझे


कहते फिर जाहिल है .



बेनाम एक अर्ज है


गर निभ गयी है दुश्मनी तो


छोड़ दो अब जैसे भी


हूँ खुश फिलहाल मैं .



अजय अमिताभ सुमन



उर्फ


बेनाम कोहड़ाबाज़ारी



शादिया ना लिखले लिलार














































                                       










श्रीनाथ आशावादी

Friday, March 4, 2011

धिया के करेजवा साले ए राम

       
                          


















                                            


                     श्रीनाथ आशावादी

Wednesday, March 2, 2011

सरकारी पोलिसी

















रिक्शेवाले से लाला पूछा
चलोगे क्या फरीदाबाद .
उसने बोला झटाक से उठकर
बिल्कुल तैयार हूँ भाई साब.


मैं तैयार हूँ भाई साब
की सामान क्या है तेरे साथ ?
तोंद उठाकर लाला बोला
आया तो मैं खाली हाथ .


आया तो मैं खाली हाथ
की साथ मेरे घरवाली है .
और देख ले पीछे भैया
वो हथिनी मेरी साली है .


वो हथिनी मेरी साली है
कि क्या लोगे किराया ?
देख के तीनों लाला हाथी
रिक्शा भी चकराया.


रिक्शावाला बोला पहले
आजम लूँ अपनी ताकत .
दुबला पतला चिरकूट मैं तुम
तीनों के तीनों आफत .


तीनों के तीनों आफत पहले
बैठो तो इस रिक्शे पर
जोर लगा के देखूं मैं फिर
चल पाता है रिक्शा घर ?


चल पाता है रिक्शा घर
कि जब उसने जोर लगाया .
टूनटूनी कमर वजनी रिक्शा
चर चर चर चर चर्राया .


रिक्शा चर मर चर्राया
कि रोड ओमपुरी गाल
डगमग डगमग रिक्शा डोले
हुआ बहुत ही बुरा हाल.


हुआ बहुत ही बुरा हाल
कि लाला ने जोश जगाया .
ठम ठोक ठेल के रिक्शे ने
तो परबत भी झुठलाया .




परबत भी को झुठलाया
कि क्या लोगे पैसा बोलो ?
गस खाके बोला फिर रिक्शा
दे दो दस रूपये किलो .


दो दस रूपये किलो लाला
बोला समझा क्या सब्जी
मैं लाला इंसान हूँ भाई
साली और मेरी बीबी .


साली और मेरी बीबी
फिर बोला वो रिक्शेवाला .
ये तोंद नहीं मशीन है भैया
सबकुछ पचनेवाला .


सबकुछ पचनेवाला भाई
आलू बैगन टमाटर
कहाँ लिए डकार अभीतक
कटहल मुर्गे खाकर .


कटहल मुर्गे खाकर कि
सरकारी अजब किराया है .
शेखचिल्ली के रूपये दस
और दस हाथी का भी भाड़ा है ?


अँधेरी है नगरी भैया
और चौपट करार है.
एक तराजू हाथी,चीलर
तौले ये सरकार है .


एक आंख से देखे तौले
सबको अजब बीमार है .
इसी पोलिसी का अ़ब तक
रिक्शेवाला शिकार है .








अजय अमिताभ सुमन
उर्फ
बेनाम कोहड़ाबाज़ारी