Thursday, May 28, 2009

कवि बनने की कोशिश

कविता करने से कौन रोक रहा है यार ।
कविता लिखने का तुझे पुरा है आधिकार ।
ये भी है ठीक कि तेरे भीतर का कलाकार ।
जग रहा है ये जगना भी मुझे है स्वीकार ।
गिला बस इस बात का कि अंदरूनी कलाकार ।
कर रहा है बार बार , बार बार और लगातार ।
कविता कि आत्मा का ऐसा बलात्कार ।
जैसे कि रीन की सफेदी की चमकार ।
हर बार , बार बार , बार बार और लगातार ।




अजय अमिताभ सुमन
उर्फ़
बेनाम कोहडा बाजारी

Saturday, May 23, 2009

जलन

प्रॉब्लम इस बात में नही है
कि वो बड़ा आदमी है ,
प्रॉब्लम इस बात में है
की वो अपने आप को बड़ा आदमी समझता है ।


प्रॉब्लम इस बात में नही है
कि वो अपने आप को बड़ा आदमी समझता है ,
प्रॉब्लम इस बात में है
कि वो जितना बड़ा आदमी है ,
अपने आपको उससे बड़ा आदमी समझता है ।


प्रॉब्लम इस बात में भी नही है
कि वो जितना बड़ा आदमी है ,
अपने आपको वो उससे बड़ा समझता है ।
प्रॉब्लम इस बात में है
कि अपने आपको जितना बड़ा आदमी समझता है
उससे अपने आपको ज्यादा बड़ा आदमी दिखाता है ।


प्रॉब्लम इस बात में भी नही है
कि वो अपने आपको ज्यादा बड़ा दिखाता है ,
प्रॉब्लम दरअसल इस बात में है
कि वो जो कुछ भी दिखाता है ,
मुझे सब कुछ दीखता है ।


प्रॉब्लम इस बात में भी नही है
कि वो जो कुछ भी दिखाता है
मुझे सब कुछ दिखाता है ,
प्रॉब्लम दरअसल इस बात में है
कि मुझे जो भी दिखाता है
वो सब मुझे खलता है ।




अजय अमिताभ सुमन
उर्फ़
बेनाम कोंहड़ाबाजारी

Saturday, May 2, 2009

परसेप्शन

नागफनी की नजर में ,
नागफनी ना तो खुबसूरत है ,
और ना ही बदसूरत ।

नागफनी कांटेदार है ,
और बस कांटेदार ही है ।



अजय अमिताभ सुमन
उर्फ़
बेनाम कोहडाबाजारी