Tuesday, April 19, 2011

भगवन तेरी एक लीला
























एक जंगली भैंस

एक जंगल में
आठ नौ भूखे जंगली सियार
एक सियार नोचता है
भैंस के एक थान को
दर्द से कराहती भैंस
दूसरा सियार फोड़ता है
दूसरे थान को
दर्द से चित्कारती भैंस
फिर टूट पड़ते हैं सारे सियार
नोचते,फोड़ते
थान से छेद बनाते , छेद बढ़ाते
दर्द से बिलबिलाती भैंस
बढ़ते जाते सियार
फाड़ते जाते सियार
गिर पड़ती है भैंस
देखती है आँख खोले
पुरे होश में
शरीर फटते हुए
खून निकलते हुए
शरीर में सियारों को घुसते हुए
सियार लड़ते हैं
फाड़ते हैं पेट
झपटते हैं आपस में
नोचते हैं
अंतडियां निकालते हैं
लाड़ गिरातें हैं, चबातें हैं
मांस खातें हैं
घंटों-घंटों
चित्कारती है भैंस
पुकारती हैं भैंस
शायद तुझको भगवन


“बेनाम” इसमें तेरी गरिमा क्या है ?
भैंस के इस तरह मरने में तेरी महिमा क्या है ???




अजय अमिताभ सुमन
उर्फ
बेनाम कोहड़ाबाज़ारी