Thursday, February 24, 2011

अजनबी

क्यूँ आज भी हमारा , हमदम नहीं इस शहर में ,
ना पूछा किसी ने , ना हमसे बताया गया .




मुलाकातें होती रही , रिश्ते तो बनते रहे ,
ना किसी को थी जरूरत , ना हमसे निभाया गया .




दुनिया तेरे तरीकों ने , सताया बहुत हमें ,
समझ के नाकाबिल ना , हमको समझाया गया .




फासले बढते रहे , दिल-दिमागो के दरमियाँ ,
उलझनें सजती रहीं , ना हमसे सुलझाया गया .




बेनाम खुद से अजनबी हम , बन गए रफ्ता रफ्ता ,
रूठे जो खुद से खुद को , ना अब तक मनाया गया .




अजय अमिताभ सुमन
उर्फ
बेनाम कोहड़ाबाज़ारी

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