Saturday, January 17, 2009

लव कॉमपेन

फंसी जीवन की नैया मेरी , बीच मझधार की तरह ।
तू दे दे सहारा मुझको , बन पतवार की तरह ।

तेरी पलकों की मैंने जो , छांव पायी है ।
मेरी सुखी सी बगिया में, हरियाली छाई है ।
तेरा ये हंसना है या की , रुनझुन रुनझुन ।
खनखनाना कोई , वोटों की झंकार की तरह ।

तेरे आगोश में ही , रहने की चाहत है ।
तेरे मेघ से बालों ने, किया मुझे आहत है ।
मेजोरिटी कौम की हो तुम , तो इसमे मेरा क्या दोष।
ये इश्क नही मेरा , पॉलिटिकल हथियार की तरह ।

हर पॉँच साल पे नही , हर रोज वापस आऊंगा ।
तेरी नजरों के सामने हीं, ये जीवन बिताउंगा ।
अगर कहता हूँ कुछ तो , निभाउंगा सच में हीं ।
समझो न मेरा वादा , चुनावी प्रचार की तरह ।

जबसे तेरे हुस्न की , एक झलक पाई है ।
नही और हासिल करने की , ख्वाहिश बाकी है ।
अब बस भी करो ये रखना दुरी मुझसे ।
जैसे जनता से जनता की सरकार की तरह ।

प्रिये कह के तो देख , कुछ भी कर जाउंगा ।
ओमपुरी सड़क को , हेमा माफिक बनवाऊंगा ।
अब छोड़ भी दो यूँ , चलाना अपनी जुबां ।
विपक्षी नेता का संसद में तलवार की तरह ।

चेंज की है पार्टी तो, तुझको क्यों रंज है ।
पोलिटीकल गलियों के, होते रास्ते तंग है ।
चेंज की है पार्टी , पर तुझको न बदलूँगा।
छोडो भी शक करना , किसी पत्रकार की तरह ।

बड़ी मुश्किल से गढा ये बंधन , इसे बनाये रखना ।
पॉलिटिकल अपोनेनटो से , इसे बचाये रखना ।
बस फेविकोल से गोंद की , तलाश है ऐ भगवन।
की टूटे न रिश्ता अपना , मिली जुली सरकार की तरह ।

फसी जीवन की नैया मेरी , बीच मझधार की तरह ।
तू दे दे सहारा मुझको , बन पतवार की तरह ।

बेनाम कोंहराबाजारी
उर्फ़
अजय अमिताभ सुमन