Thursday, January 1, 2009

नेत्रदान

नेत्रदान के पक्ष में थे डाक्टर राजदान ।
मैंने कहा क्षमा करें श्रीमान ।
क्षमा करें श्रीमान की लगाकर आँख हमारी ।
अगर किसी अंधे ने लड़की पे मारी ।
तो तुम्ही कहो उस अंधे का क्या बिगरेगा ।
आँख हमारी , पाप हमी को लगेगा ।


सौजन्य
मिस्टर बिश्नोई

तुम बहुत खुबसूरत हो

तुम्हे पता है तुम कितनी खुबसूरत हो ।
देखना हो तो ले लो मेरी आँखे ।
कि चलती फिरती अजंता कि मूरत हो ।
तुम बहुत खुबसूरत हो।

पलकों के ख्वाब हो तुम
फूलों के पराग हो तुम ।
गाती जो गीत कोयल
वो गीत लाजवाब हो तुम ।
चांदनी चिटकती रातों में
और मदहोशी छा जाती है
ऐसी मनोहारी मुहुरत हो ।
सच में तुम बहुत खुबसूरत हो ।

जैसे चाँद बिना चकोर कहाँ
बिन बादल के मोर कहाँ ।
जैसे मीन नहीं बिन नीर के
और धनुष नहीं बिन तीर के ।
जैसे धड़कन का आना जाना
आश्रित रहता है सांसों पे
ऐसी मेरी जरुरत हो ।
खुदा कसम तुम बहुत खुबसूरत हो ।


मैं गरम धुप , तू शीतल छाया ।
मैं शुष्क बदन , तू कोमल काया ।
क्यूँ कर के ये मैं कह पाऊं
तू बन जाओ मेरा साया ।
मरुभुभी के प्यासे माफिक
मारा मारा मैं फिरता हूँ
जो एक झलक से बुझ जाये
ऐसी मोहक तुम सूरत हो ।
सच मुछ तुम बहुत खुबसूरत हो ।

तेरा रूप अनुपम ऐसा कि
शब्द छोटे पड़ जातें है ।
ऐसी देहयष्टि तेरी कि
अलंकार विवश हो जातें है ।
बस यह कह चुप होता हूँ
नयनों से दिल पे राज करे
ऐसी शिल्पकार कि मूरत हो।
उफ़ तुम बहुत खुबसूरत हो ।


बेनाम कोहडाबाजारी

उर्फ़
अजय अमिताभ सुमन