Saturday, February 7, 2009

शहर का आदमी

रोज सबेरे उठकर सोते हुए बेटे के माथे का चुम्बन लेता हूँ ,
नहाता हूँ , खाता हूँ ,
और चल पड़ता हूँ दिन की लडाई के लिए ।

लड़ता हूँ दिनभर अथक ,
ताकि
पत्नी को मिले सुकून,
बेटे को दुलार ,
भाई को स्नेह ,
और माता पिता को सम्मान ।

फ़िर लौटता हूँ घर ,
देर रात को ,
हाथ धोता हूँ , खाता हूँ ,
सोए हुए बेटे के माथे का चुम्बन लेता हूँ,
और सो जाता हूँ ।

मैं दूर रहता हूँ आपनों से ,
अपनों के वास्ते।


बेनाम कोंहड़ाबाजारी
उर्फ़
अजय अमिताभ सुमन