Saturday, June 13, 2009

मरहूम

खुदा के दीदार से यूँ ही नहीं रहा वो मरहूम ,
तमाम उम्र गुजरी उसकी , छत उजाडने में , सवारने में ।


अजय अमिताभ सुमन
उर्फ़
बेनाम कोहडा बाजारी

Thursday, May 28, 2009

कवि बनने की कोशिश

कविता करने से कौन रोक रहा है यार ।
कविता लिखने का तुझे पुरा है आधिकार ।
ये भी है ठीक कि तेरे भीतर का कलाकार ।
जग रहा है ये जगना भी मुझे है स्वीकार ।
गिला बस इस बात का कि अंदरूनी कलाकार ।
कर रहा है बार बार , बार बार और लगातार ।
कविता कि आत्मा का ऐसा बलात्कार ।
जैसे कि रीन की सफेदी की चमकार ।
हर बार , बार बार , बार बार और लगातार ।




अजय अमिताभ सुमन
उर्फ़
बेनाम कोहडा बाजारी

Saturday, May 23, 2009

जलन

प्रॉब्लम इस बात में नही है
कि वो बड़ा आदमी है ,
प्रॉब्लम इस बात में है
की वो अपने आप को बड़ा आदमी समझता है ।


प्रॉब्लम इस बात में नही है
कि वो अपने आप को बड़ा आदमी समझता है ,
प्रॉब्लम इस बात में है
कि वो जितना बड़ा आदमी है ,
अपने आपको उससे बड़ा आदमी समझता है ।


प्रॉब्लम इस बात में भी नही है
कि वो जितना बड़ा आदमी है ,
अपने आपको वो उससे बड़ा समझता है ।
प्रॉब्लम इस बात में है
कि अपने आपको जितना बड़ा आदमी समझता है
उससे अपने आपको ज्यादा बड़ा आदमी दिखाता है ।


प्रॉब्लम इस बात में भी नही है
कि वो अपने आपको ज्यादा बड़ा दिखाता है ,
प्रॉब्लम दरअसल इस बात में है
कि वो जो कुछ भी दिखाता है ,
मुझे सब कुछ दीखता है ।


प्रॉब्लम इस बात में भी नही है
कि वो जो कुछ भी दिखाता है
मुझे सब कुछ दिखाता है ,
प्रॉब्लम दरअसल इस बात में है
कि मुझे जो भी दिखाता है
वो सब मुझे खलता है ।




अजय अमिताभ सुमन
उर्फ़
बेनाम कोंहड़ाबाजारी

Saturday, May 2, 2009

परसेप्शन

नागफनी की नजर में ,
नागफनी ना तो खुबसूरत है ,
और ना ही बदसूरत ।

नागफनी कांटेदार है ,
और बस कांटेदार ही है ।



अजय अमिताभ सुमन
उर्फ़
बेनाम कोहडाबाजारी

Thursday, April 9, 2009

प्रश्न

मैंने पूछा
अपने गाँव कि बड़की माई से ,
कि
कैसे आप जिन्दा है
बिना पड़े ,
एक किताब भी .

तो उन्होंने कहा
ठीक वैसे ही ,
जैसे कि
तू जिन्दा है
बिना लिए
एक बीडी का एक कश भी.

बेनाम कोहडाबाजारी
उर्फे
जय अमिताभ सुमन

Saturday, February 7, 2009

शहर का आदमी

रोज सबेरे उठकर सोते हुए बेटे के माथे का चुम्बन लेता हूँ ,
नहाता हूँ , खाता हूँ ,
और चल पड़ता हूँ दिन की लडाई के लिए ।

लड़ता हूँ दिनभर अथक ,
ताकि
पत्नी को मिले सुकून,
बेटे को दुलार ,
भाई को स्नेह ,
और माता पिता को सम्मान ।

फ़िर लौटता हूँ घर ,
देर रात को ,
हाथ धोता हूँ , खाता हूँ ,
सोए हुए बेटे के माथे का चुम्बन लेता हूँ,
और सो जाता हूँ ।

मैं दूर रहता हूँ आपनों से ,
अपनों के वास्ते।


बेनाम कोंहड़ाबाजारी
उर्फ़
अजय अमिताभ सुमन


Thursday, January 29, 2009

इल्जाम

कड़कती ठंढ थी बड़ी , था दिसम्बर का महिना ।
घनेरी धुंध में मुश्किल , हुआ था ठीक से चलना ।

इसी दिल्ली की सर्दी में , जीने के वास्ते भाई ।
गया था मैं भी अपने , ऑफिस के रास्ते भाई ।

निकलता मुख से था धुआं व सिमटे हुए थे लोग ।
मेरे माथे पे थी टोपी , और सिने पे ओवरकोट ।

इसी कड़कती ठंढ में , देखा कोई था चिथड़े में ।
कुडे से लेके छिलके , केले के डाल जबड़े में ।

कुत्तों से कर रहा था छिना झपटी कुडे के वास्ते ।
खुदा तू ही बता में क्या लिखूं अब तेरे वास्ते ।

माना सबकुछ मिला मुझको तेरी इस दुनिया में ।
फ़िर भी शिकायत है मुझे , इस तेरी दुनिया से ।

उस इंसान का चेहरा सिने से उतरता नहीं ।
है बेहतर कुत्तों की हालत , उस इंसान से कहीं ।

क्यूँ कर नसीबों वाले ऐसे इस जहाँ में है आते ।
खुदा में दे रहा इल्जाम इन अभागों के वास्ते ।



बेनाम कोहडाबाजारी
उर्फ़
अजय अमिताभ सुमन

Tuesday, January 27, 2009

हाय रे टेलीफोन

टिकट के वास्ते सिनेमाहाल को , लगाया मैंने फ़ोन ।
बजी घंटी ट्रिंग ट्रिंग तो पूछा है भाई कौन ।

पूछा है भाई कौन कि तीन सीट क्या खाली है ।
मैं हूँ मेरी बीबी है और साथ में साली है ।

उसने कहा तीन सीट कि क्या करते है हिसाब ।
पुरी जगह ही खाली है, सपरिवार आइये जनाब ।

मैंने पूछा किस जगह से बोल रहे हो श्रीमान ।
उसने कहा मैं भुत हूँ , घर मेरा शमशान ।

हाय रे टेलीफोन , ये कैसी तेरी माया ।
देखना था चलचित्र , तुने शमशान पहुँचाया ।

बेनाम कोंहड़ाबाजारी
उर्फ़
अजय अमिताभ सुमन

Sunday, January 25, 2009

फितरते इंसान

फ़ितरते इन्सान , ना समझे बेनाम
ये सोचता कुछ और , कहता कुछ और , और करता कुछ और ।



बेनाम कोह्डाबाजारी
उर्फ़्
अजय अमिताभ सुमन

Friday, January 23, 2009

बुरा एहसास

बुरा लगा था मुझे
बचपन में
मेरा अपनी क्लास में आना चतुर्थ
और
मेरी बहन का प्रथम आना ।

एक बार फ़िर बुरा लगा है मुझे
मेरा बन जाना इंजिनियर
और
मेरी बहन का
उसकी ससुराल में चूल्हे बर्तन धोना ।

बेनाम कोहडाबाजारी
उर्फ़
अजय अमिताभ सुमन

Tuesday, January 20, 2009

मेरी परिभाषा

प्यार करोगे
तो प्रेमी हूँ ,
गर दुलार
तो स्नेही हूँ ।

हताश हूँ
फटकार पे ,
निराश हूँ
दुत्कार पे ।

उपहास से हूँ
क्लेशग्रस्त ,
और परिहास से
द्वेषत्रस्त ।

नफरत
तिरस्कार का ,
इबादत
उपकार का ।

अनादर पे
रोष हूँ मैं ,
प्रसंशा पे
मदहोश हूँ मैं ।

हार का
संताप हूँ ,
जीत की
उल्लास हूँ ।

सम्मान हूँ
जहाँ आदर है ,
अभिमान हूँ
जहाँ सादर है ।

भरोसे का
विश्वास हूँ मैं ,
उत्साही की
आस हूँ मैं ।

भावों के संसार निरंतर
और इनके संप्रेषण ,
कर रहा परिलक्षित हूँ मैं
एक प्रतिबिंबित दर्पण ।


बेनाम कोहडाबाजारी
उर्फ़
अजय अमिताभ सुमन

Saturday, January 17, 2009

लव कॉमपेन

फंसी जीवन की नैया मेरी , बीच मझधार की तरह ।
तू दे दे सहारा मुझको , बन पतवार की तरह ।

तेरी पलकों की मैंने जो , छांव पायी है ।
मेरी सुखी सी बगिया में, हरियाली छाई है ।
तेरा ये हंसना है या की , रुनझुन रुनझुन ।
खनखनाना कोई , वोटों की झंकार की तरह ।

तेरे आगोश में ही , रहने की चाहत है ।
तेरे मेघ से बालों ने, किया मुझे आहत है ।
मेजोरिटी कौम की हो तुम , तो इसमे मेरा क्या दोष।
ये इश्क नही मेरा , पॉलिटिकल हथियार की तरह ।

हर पॉँच साल पे नही , हर रोज वापस आऊंगा ।
तेरी नजरों के सामने हीं, ये जीवन बिताउंगा ।
अगर कहता हूँ कुछ तो , निभाउंगा सच में हीं ।
समझो न मेरा वादा , चुनावी प्रचार की तरह ।

जबसे तेरे हुस्न की , एक झलक पाई है ।
नही और हासिल करने की , ख्वाहिश बाकी है ।
अब बस भी करो ये रखना दुरी मुझसे ।
जैसे जनता से जनता की सरकार की तरह ।

प्रिये कह के तो देख , कुछ भी कर जाउंगा ।
ओमपुरी सड़क को , हेमा माफिक बनवाऊंगा ।
अब छोड़ भी दो यूँ , चलाना अपनी जुबां ।
विपक्षी नेता का संसद में तलवार की तरह ।

चेंज की है पार्टी तो, तुझको क्यों रंज है ।
पोलिटीकल गलियों के, होते रास्ते तंग है ।
चेंज की है पार्टी , पर तुझको न बदलूँगा।
छोडो भी शक करना , किसी पत्रकार की तरह ।

बड़ी मुश्किल से गढा ये बंधन , इसे बनाये रखना ।
पॉलिटिकल अपोनेनटो से , इसे बचाये रखना ।
बस फेविकोल से गोंद की , तलाश है ऐ भगवन।
की टूटे न रिश्ता अपना , मिली जुली सरकार की तरह ।

फसी जीवन की नैया मेरी , बीच मझधार की तरह ।
तू दे दे सहारा मुझको , बन पतवार की तरह ।

बेनाम कोंहराबाजारी
उर्फ़
अजय अमिताभ सुमन

Tuesday, January 13, 2009

जरुरत

उसने करके खबरदार , मारा बेनाम को ।
बेईमानी में इमान की जरुरत कुछ कम नही ।


बेनाम कोह्डाबाजारी
उर्फ़्
अजय् अमिताभ सुमन

Saturday, January 10, 2009

हकीकत

हम सोच के बड़ा ये खुशगवार हो चले थे ।
बड़ी थी खुशफहमी , शिकार हो चले थे ।
मशरूफ जगह जीने कि, मुझको है मयस्सर ।
ये मान के बेफिक्र हम , हज़ार हो चले थे ।

छोटी छोटी हारों से दुखता था मेरा मन ।
छोटी छोटी बातों से टूटता था मेरा मन ।
छोटे तरीकों से , जीता जान लोगों से ।
खुदा का हज़ार शुक्रगुजार हो चले थे ।

ये जनता था नाम में , रखा कुछ भी नही ।
ये मानता था मान में , रखा कुछ भी नही ।
पर जीवन ये मेरा कि , नाम और शान पे ।
ख़ुद से खुश- नाराज , कई बार हो चले थे ।

मालूम न था गम के साये मुझपे भी छाएंगे ।
दुःख के बादल के छाये , मुझपे भी आएँगे ।
औरों को देखा रोते तो , खोली आँख थोडी ।
कि रोते लोगों से , दरकिनार हो चले थे ।

ये बीबी ये बच्चे , ये घर बार ये सपना ।
जाने किस किस को , समझा था मैं अपना ।
पर मौत के बिछावन से हुआ जब रु ब रु ।
ख़ुद ही ख़ुद से हम लाचार हो चले थे ।

देखता हूँ आंखों से , आँख पर नहीं हूँ मैं ।
सोंचता हूँ सांसों पे , नाक पर नही हूँ मैं ।
शरीर ने आख़िर में, छोड़ा जब ख़ुद का साथ।
बड़ी देर से इस सच के , दीदार हो चले थे ।



अजय अमिताभ सुमन

उर्फ
बेनाम कोहड़ाबाज़ारी

Thursday, January 8, 2009

सवालात

यहाँ कत्ल नही देखते , देखे जाते इरादे।
कानून की किताबों के , अल्फाज ही कुछ ऐसे हैं ।


बेखौफ घुमती है , कातिल तो मैं भी क्या करुँ ।
अदालत की जुबानी , बयानात ही कुछ ऐसे हैं ।

हर तारीख दर तारीख पे , देते हैं तारीख बस।
इंसाफ के रखवालों के , सौगात हीं कुछ ऐसे हैं ।

हम आह भी भरते है , तो ठोकती है जुरमाना।
इस देश की कानून के , खैरात ही कुछ ऐसे है।

फाइलों पे धुल पड़ी , चाटती हैं दीमक ।
कानून के रखवालों के , तहकीकात ही कुछ ऐसे है।

उछालते हैं शौक से , हर एक के जनाजे को ।
शहर के रखवालों के , जज्बात ही कुछ ऐसे हैं ।

आते हैं फैसले फरियादी की मौत के बाद ।
की फैसलेदारों के , इन्साफ ही कुछ ऐसे हैं ।

फरियाद अपनी लेके , बेनाम अब जाए किधर ।
अल्लाह भी बेजुबां है , सवालात हीं कुछ ऐसे हैं ।


बेनाम कोहडाबाजारी
उर्फ़
अजय अमिताभ सुमन

फितरत

जाके कोई क्या पूछे भी , आदमियत के रास्ते ।
क्या पता किन किन हालातों से गुजरता आदमी ।

चुने किसको हसरतों , जरूरतों के दरमियाँ ।
एक को कसता है तो , दूजे से पिसता आदमी ।

चलता कहाँ जोर ख़ुद की , आदतों पे आदमी का ।
कसने की कोशिश बहुत है , और बिखरता आदमी ।

गलतियाँ करना है फितरत , करता है आदतन ।
और सबक ये सीखना , कि दोहराता है आदमी ।

आदमी है एक प्यासा , और जीवन एक मरुभूमि ।
की दीखता है नीर उसको , पर तरसता आदमी ।

झूठे सच्चे ख्वाबों का , एक पुलिंदा महज है ये ।
एक से बिखरता है , दूजा संवारता आदमी ।

मानता है ख्वाब दुनिया , जानता है ख्वाब दुनिया ।
और टूटे फूटे ख्वाबों का , हिसाब करता आदमी ।

सपने रेतों के जैसे , हाथ से निकले बहुत जो ।
दूर फिसलते रहे , और पकड़ता आदमी ।

आदमी की हसरतों का , क्या बताऊँ दास्ताँ।
आग में जल खाक बनकर , राख मांगे आदमी ।

बेनाम कोहडाबाजारी

उर्फ़
अजय अमिताभ सुमन

Wednesday, January 7, 2009

सरताज ऐ वकील


जो कर न सके कोई वो काम कर जाएगा .
ये वकील दुनिया में नाम कर जाएगा .

फेकेगा दाना , फैलाएगा जाल .
सोचे कि करे कैसे मुर्गे हलाल .
आये समझ में ना , शकुनी को जो भी .
चाल शतरंजी तमाम चल जायेगा .
ये वकील दुनिया में नाम कर जायेगा .

चक्कर कटवाएगा धंधे के नाम पे .
सालो लगवाएगा महीनों के काम पे .
ना हो ख़तम केस कि लगाके पेटिशन .
एडजर्नमेंट के सारे इन्तजाम कर जाएगा .
ये वकील दुनिया में नाम कर जाएगा .

एडजर्नमेंट पेटिसन कि मांगेगा फीस .
क्लाएंट का लोन से , टूटे भले ही शीश .
होने पे डिसमिस एडजर्नमेंट पेटिसन के .
अपील के प्रबंध ये तमाम कर जाएगा .
ये वकील दुनिया में नाम कर जाएगा .

ना हो दम केस में , फिर भी लड़वाएगा
जेब भारी क्लाएंट की , खाली करवाएगा .
बिकेगा क्लाएंट का नाम ग्राम धाम तब .
सबकुछ नीलाम ये तमाम कर जाएगा .
ये वकील दुनिया में नाम कर जाएगा .

मच्छड़ के माफिक , खून को चूस .
बैठ के सिने पे , निकलेगा जूस .
क्लाएंट के सर पे , रख भारी पत्थर.
गंगाजी में राम नाम कर जाएगा .
ये वकील दुनिया में नाम कर जाएगा .

प्रोफेसनल एथीक्स है क्या जनता नहीं .
रेसपानसीबीलीटी क्लाएंट की, पहचानता नहीं .
कि अपोसिट पार्टी से , खाके पैसे भाई .
केस क्लाएंट का गुम नाम कर जाएगा .
ये वकील दुनिया में नाम कर जाएगा .

प्रक्टिस चली तो बन जाएगा सीनियर .
नहीं तो जज , सेटिंग से डीअर.
नहीं गली दाल तो , पोलिटिक्स में भाई .
साफ आपने हाथ खुलेआम कर जाएगा .
ये वकील दुनिया में नाम कर जाएगा .

जजों को रिशवत खिलाएगा भाई .
ना माने तो जिस्म भेजवाएगा भाई .
हर कीमत पे केस में जीत चाहिए .
कि कत्ले- कानून सरेआम कर जाएगा .
ये वकील दुनिया में नाम कर जाएगा .

सच में बंधी है पट्टी , कानून कि आँखों पे .
रोती है जनता अदालत के कामों से .
ऐसे भी बची कहाँ है , इज्जत अब कोर्ट कि .
बची खुची है जो भी , नीलाम कर जाएगा .
ये वकील दुनिया में नाम कर जाएगा।

जो कर न सके कोई , वो काम कर जाएगा .
ये वकील दुनिया में , नाम कर जाएगा .

बेनाम कोहडाबाजारी

उर्फ़
अजय अमिताभ सुमन

Tuesday, January 6, 2009

छद्म

न्यायाधीश जैसे शब्दों का औचित्य
मृगमरीचिका कि भांति ही
अस्तित्व से परे है ।
क्योंकि
न्यायाधीश न्याय नहीं करते
बल्कि फैसले देते है ।



बेनाम कोहडा बाजारी
उर्फ़
अजय अमिताभ सुमन

पेट के दांत

हाथी तो मुफ्त ही में है बदनाम
अपने दो दो दांतों के वास्ते ।
आदमी के मुंह में तो क्या
पेट में भी दांत होते है ।


बेनाम कोहडाबाजारी

उर्फ़
अजय अमिताभ सुमन

अन्तर

तुझमे और अरुण जेटली में
फर्क इतना नही है
कि उसके सर में सिंग है ।

फर्क सिर्फ़ इतना है
की तुम हिल जाते हो
कोर्ट में खड़ा होने पे
और जेटली के खड़े होने पे
कोर्ट हिल जाती है ।

बेनाम कोह्डाबाजारी
उर्फ़्
अजय अमिताभ सुमन

Saturday, January 3, 2009

खेतवा में रोएली जनानावा

खेतवा में रोएली जननवा ऐ मएनवा कहाँ रे गईले ना,

हमार आँखी के रतनावा कहाँ रे गईले ना.

बारी जनमवले उ तीन गो लइकवा .
तरसेले अन्न खातिर उ बलकावा .
बाटे टूटल फुटल फूस के मकनावा ऐ मएनवा की दुखवे में ना .
बीते जिनगी के दिनवा दुखवे में ना .
हमार आँखी के रतनावा कहाँ रे गईले ना.

घरवा में पड़ल रहे मरद बेरमिया .
दउवा ना उधार करे डाक्टर हरामिया .
मालिक से करजा लेके दवा दारू कईली .
मरल सवानगवा के परनवा बचईली .
पथ खातिर रहे नहीं अनवा ऐ मएनवा सावन अईसन ना .
बरसे झर झर नएनवा सावन अईसन ना .
हमार आँखी के रतनावा कहाँ रे गईले ना.

अन्न के बिना घरवा में बनेला भोजनवा.
खाए खातिर बिलखत रलेसन ललनवा.
ओकनी के आपन कलेजा से सटवली.
सुसुकत बालकन के रोवत समझइली.
होते भोरे करब कटनिया ऐ मएनवा करेजवा सुनु ना .
तोहके देहब हम भोजनवा करेजवा सुनु ना .
हमार आँखी के रतनावा कहाँ रे गईले ना.


खईला बिना छतिया में दुधवो ना आवे .
गोदी के बलकवा उ सुखले चबावे .
फटी जाइत छतिया त खुनवे पियाईती .
बिलखत लईकवा के क्षुधवा मिटईती .
इहे करे धनिया के मनवा ऐ मएनवा की पूरा ना होखे ना .
कभी मनवा के सपनवा पूरा ना होखे ना .
हमार आँखी के रतनावा कहाँ रे गईले ना.

बागवा में कोइल जब कुहू कुहू करे लागल .
चिरई चुरुनगावा के चह चह होखे लागल .
बीस दिन के बलकवा के गोदिया उठवली .
काटे खातिर गेहूंआ के खेतवा में गईली .
पेट खातिर सुख बा सपनवा देहिया में ना .
नईखे एको बूंद खुनावा देहिया में ना .
हमार आँखी के रतनावा कहाँ रे गईले ना.


बूंदा बूंदी होखे कभी बहेला पवनवा .
धनिया के दुख देखि रोए आसमनवा .
खेतवा के मोड़ पर लईका सुतवली .
फाटल गमछिया के देह पर ओढवली .
काटे कागली गेहुआ के थानवा ऐ मएनवा कमवे पर ना .
रहे धनिया के धेयनवा कमवे पर ना .
हमार आँखी के रतनावा कहाँ रे गईले ना.


एही बीचे बलकवा जोर से चिहुकलस .
सोचली की बाबु निनिये में सपनईलस .
काटके गेहुआ उ गोदिया उठावे .
गईली लईकवा के दुधवा पियावे.
करे लगली जोर से रोदनवा ऐ मएनवा की सियरा लेलस ना .
हमार बाबु के परनवा सियरा रे लेलस ना .
हमार आँखी के रतनावा कहाँ रे गईले ना.


रोअल सुनी गाव के लोग सबे जुटल .
कहे सब मजूरन के भाग बाटे फूटल .
बरकन लोगवन के देशवा में राज बा .
मेहनत मजूरी वाला ईहा मोहताज बा .
इहे ह आजाद हिन्दुस्तनवा ऐ मएनावा , केहू रे बाटे ना .
गरीब के भगवनवा केहू रे बाटे ना .
हमार आँखी के रतनावा कहाँ रे गईले ना.


श्रीनाथ आशावादी






Thursday, January 1, 2009

नेत्रदान

नेत्रदान के पक्ष में थे डाक्टर राजदान ।
मैंने कहा क्षमा करें श्रीमान ।
क्षमा करें श्रीमान की लगाकर आँख हमारी ।
अगर किसी अंधे ने लड़की पे मारी ।
तो तुम्ही कहो उस अंधे का क्या बिगरेगा ।
आँख हमारी , पाप हमी को लगेगा ।


सौजन्य
मिस्टर बिश्नोई

तुम बहुत खुबसूरत हो

तुम्हे पता है तुम कितनी खुबसूरत हो ।
देखना हो तो ले लो मेरी आँखे ।
कि चलती फिरती अजंता कि मूरत हो ।
तुम बहुत खुबसूरत हो।

पलकों के ख्वाब हो तुम
फूलों के पराग हो तुम ।
गाती जो गीत कोयल
वो गीत लाजवाब हो तुम ।
चांदनी चिटकती रातों में
और मदहोशी छा जाती है
ऐसी मनोहारी मुहुरत हो ।
सच में तुम बहुत खुबसूरत हो ।

जैसे चाँद बिना चकोर कहाँ
बिन बादल के मोर कहाँ ।
जैसे मीन नहीं बिन नीर के
और धनुष नहीं बिन तीर के ।
जैसे धड़कन का आना जाना
आश्रित रहता है सांसों पे
ऐसी मेरी जरुरत हो ।
खुदा कसम तुम बहुत खुबसूरत हो ।


मैं गरम धुप , तू शीतल छाया ।
मैं शुष्क बदन , तू कोमल काया ।
क्यूँ कर के ये मैं कह पाऊं
तू बन जाओ मेरा साया ।
मरुभुभी के प्यासे माफिक
मारा मारा मैं फिरता हूँ
जो एक झलक से बुझ जाये
ऐसी मोहक तुम सूरत हो ।
सच मुछ तुम बहुत खुबसूरत हो ।

तेरा रूप अनुपम ऐसा कि
शब्द छोटे पड़ जातें है ।
ऐसी देहयष्टि तेरी कि
अलंकार विवश हो जातें है ।
बस यह कह चुप होता हूँ
नयनों से दिल पे राज करे
ऐसी शिल्पकार कि मूरत हो।
उफ़ तुम बहुत खुबसूरत हो ।


बेनाम कोहडाबाजारी

उर्फ़
अजय अमिताभ सुमन