Friday, March 25, 2011

बुजुर्गों की होली

















बुजुर्गों     के      संग

धुले मन का उमंग .
खेलो     होली    ऐसे
जैसे    कोई सत्संग .


जैसे    कोई       सत्संग
कि अबीर ही है आस.
डालो   संभल   के जरा
दुःख    रही     है नाक.


दुःख       रही      है   नाक
कि    करो     बस   प्रणाम .
रंग को    तो    दूर से ही
राम राम भाई राम राम .




अजय अमिताभ सुमन
उर्फ
बेनाम कोहड़ाबाज़ारी