Wednesday, April 13, 2011

छोटहन सा बचवा सयान हो जाला





दो चार आखर पढके बेईमान हो जाला.
आ छोटहन सा बचवा सयान हो जाला.


लईकन के बचपन में एने ओने भागल.
तोतली आवाज इनके बड़ा नीक लागल.
उहे जवानी में नीम के जुबान हो जाला.
आ छोटहन सा बचवा सयान हो जाला.


बचवा  के   मन    में    रहे  ना एको पाप.
सपनों में गलती से कहे ना झूठो साच.
उहे  बढ़ला   पे झूठ के गतान हो जाला.
आ छोटहन सा बचवा सयान हो जाला.


लईका आउर   लईकी  के बचपन के साथ.
खेतवा में खेले कूदे डाल के हाथों में हाथ.
उहे  जवानी   में   छुवे त बदनाम हो जाला.
आ   छोटहन   सा    बचवा सयान हो जाला.


तुरंते        लड़े     आउर     तुरंते मान जावे.
भागे    लड़ाई     करे     फेनु      लगे    आवे.
उहे बढला पर बड़का अभिमान हो जाला.
आ छोटहन    सा   बचवा सयान हो जाला.


माँई बाबू से प्यार करे , करे परनाम .
अब देखीं दूर से हीं कईसे करे सलाम .
कि घरवा में जईसे मेहमान हो जाला .
आ छोटहन सा बचवा सयान हो जाला.


जाति     आ     पाति     के बात ना माने.
धरम का   ह    देश का ह बात ना जाने.
बड़का में लोभ द्वेष के दोकान हो जाला.
आ छोटहन    सा    बचवा सयान हो जाला.


लईकन के प्रेम के धागा से लोग बांधल .
कि देवतो भी इनके पवित्रता के कायल .
उहे जवानी में झूठ के खदान हो जाला .
आ छोटहन सा बचवा सयान हो जाला.


दो चार आखर पढके बेईमान हो जाला.
आ छोटहन सा बचवा सयान हो जाला.



अजय अमिताभ सुमन
उर्फ
बेनाम कोहड़ाबाज़ारी