Monday, April 4, 2011

शहर और देहात

ले आये डिग्री बहुत तुम पढ़ लिखकर.

हम गावों में पलते रहे निरा अनपढ़ .

बने कहाँ इंसान कोई हमसे बेहतर .
है कोई हममें तुझमे मौलिक अंतर .

हम झगड़ा करते मकई और मचानों पे .
और तुम्हारी फ्रिज टी.वी. समानों पे .


हम लड़ते आपस में आपस में सुलझाते .
तुम एग्रीमेंट करते मेडीएसन अपनाते .


हमारे बदन पे कपड़े नहीं कि पैसे कम हैं .
तुम खरीदते कपड़े वही कि दिखे बदन है .

हमारी भूख हमारी सबसे बड़ी बीमारी है .
तुम्हे भूख नहीं लगने कि चिंता जारी है .


हम काम बहुत करते कि नींद बहुत सताती है .
आराम बहुत करते तुम नींद कहाँ फिर आती है .


गावों में पानी से परेशां , बाढ़ बहुत आती है .
शहरों एक बूंद भी , सुना है बहुत लुभाती है .


आई लव यू कहने से प्यार तुम्हार बढ़ नहीं जाता .
और हमारा प्यार तो जाने बस नयनों की भाषा .

उम्र हमारी खपती सारी एक मकान बनानें में .
और तुम्हारी अनगिनत सजाकर गार्ड बचानें में .

गुस्से की बात कहते हम गाली देकर .
और तुम झुंझलाते अंग्रेजी में कहकर .

अंतिम यात्रा में तुम्हे भी कन्धों का मिलता साथ .
मरते हम भी और होती बिदाई अपनों के हाथ .


अजय अमिताभ सुमन
उर्फ
बेनाम कोहड़ाबाज़ारी