Monday, December 29, 2008

चाहत



अदा भी सनम के , क्या खूब है खुदा मेरे ।
लेके दिल पूछते है , क्या दिल से चाहता हूँ ।

जो दिल ही दे दिया है , तो दिल की इस बात को ।
दिल से जताउन कैसे , की दिल से चाहता हूँ ।


ये दिल जो ले गए हो , दिमाग भी ले जाओ ।
मेरी जमीं तुम्हारी , आकाश भी ले जाओ ।

फिदा थे तुमपे पहले , फिदा है तुमपे अब तक ।
और कहूँ क्या तुमसे , क्या कहना चाहता हूँ ।


बस इसी जनम की , नही है मुझको चाहत ।
लगता है ऐसा मुझको, सदियों से चाहता हूँ ।

तू समां जाए मुझमे , मैं समां जाऊँ तुझमे ।
बस इतना चाहता हूँ , बस इतना चाहता हूँ ।


बेनाम कोहडाबाजारी
उर्फ़
अजय अमिताभ सुमन

विस्मरण




याद करने की हद से गुजर जाता है , जैसे याद कोई ।
इश्क ठीक वैसे ही , आज मेरे जेहन में शामिल है ।




उर्फ़

अजय अमिताभ सुमन

वकील होने का मतलब


वो वकील हैं
इसलिए
यदि लाइब्रेरी के पानी के नल की टुटी खुली है
तो इस बात को लिब्ररियन के पास ले जाएँगे
आपनी फरियाद सुनाएँगे
अनसुनी होने पे अपनी बात
छात्रों में आवाज फैलंगे
कौमी अवाम जगाएंगे
थाने में रपट लिखाएँगे
सब कुछ करेंगे
नल में लकड़ी ठुसने के सिवा





बेनाम कोहड़ाबाजारी
उर्फ़
अजय अमिताभ सुमन

विजेता कौन

विजेता कौन ?
राम या रावण ??
कृष्ण या कंस ???
अर्जुन या कर्ण ????

कठिन प्रश्न
गूढ़ गहन

उत्तर सरल
नितांत सरल

विजेता

ना राम ना रावण
ना कृष्ण ना कंस
ना अर्जुन ना कर्ण

विजेता

त्रस्त या तुष्ट
विजेता से
इतिहासकार की कलम


बेनाम कोहड़ाबाजारी

उर्फ़
अजय अमिताभ सुमन







निष्कर्ष


धर्मं की तलाश में
युयुत्शु की तरह अपना पक्ष बदला
इधर से उधर तक
तलाशा धरती के इस कोने से उस कोने तक
पर यही जाना
कि केन्द्र से परिधिगत दुरी हमेशा एक सामान रहती है
यानि कि तलाश जो कि
शुन्य से शुरु हुई थी
वो शुन्य के गिर्द और
शुन्य तक ही रही
और पहचाना कि दुनिया गोल है.


अजय अमिताभ सुमन
उर्फ
बेनाम कोहड़ाबाज़ारी