Thursday, December 18, 2008

आत्म कथ्य


ना पूछो मैं क्या कहता हूँ ,
क्या करता हूँ क्या सुनता हूँ .

हूँ दुनिया को देखा जैसे ,
चलते वैसे ही मैं चलता हूँ .

चुप नहीं रहने का करता दावा,
और नहीं कुछ कह पाता हूँ.

बहुत बड़ी उलझन है यारो,
सचमुच मैं अबशर्मिन्दा हूँ

सच नहीं कहना मज़बूरी,
झूठ नहीं मैं सुन पाता हूँ .

मन ही मन में जंग छिडी है ,
बिना आग के मैं जलता हूँ .

सूरज का उगना है मुश्किल ,
फिर भी खुशफहमियों से सजता हूँ .

कभी तो होगी सुबह सुहानी ,
शाम हूँ यारो मैं ढलता हूँ .




बेनाम कोह्डाबाजारी
उर्फ़्
अजय अमिताभ सुमन

मतलब

लोग पूछते हैं मुझसे मेरे मजहब का नाम
नाकाफी है शायद मेरा इंसान होना



अजय अमिताभ सुमन
उर्फ़
बेनाम कोहड़ाबाज़ारी

शौक

दुनिया ये तेरी मेरी , फरक फकत की यू हैI
ना आरजू हुनुज है , ना कोई जुस्तजू हैII


दियारे खुप्तागा माफिक, है मंजर कायनात केI
ताउन से भी मुश्किल तबियत हालत केII


ना बहती हर सहर , मर्सत बयार सी I
शामें है शामें हिज्र , रातें सबे फिराक कीII


ऐ खुदा तू हिन् जाने , ये उक्दय्होक कायनातI
जहाँ में ईब्लिश गालिब, व दोजोख में काफिरों की जामतII


सजदे तो मैं भी रखता तेरी रहगुजर में ऐ मबुद
कि तल्खी ऐ जिस्त से , दिल भारी दिमाग उब II


अब चलो चलें पूरा करने , आपने आपने शौकI
तू पैदा कर नसले आदम मैं मुक्करार अपनी मौतII




अजय अमिताभ सुमन
उर्फ़
बेनाम कोहड़ाबाज़ारी