Monday, December 29, 2008

चाहत



अदा भी सनम के , क्या खूब है खुदा मेरे ।
लेके दिल पूछते है , क्या दिल से चाहता हूँ ।

जो दिल ही दे दिया है , तो दिल की इस बात को ।
दिल से जताउन कैसे , की दिल से चाहता हूँ ।


ये दिल जो ले गए हो , दिमाग भी ले जाओ ।
मेरी जमीं तुम्हारी , आकाश भी ले जाओ ।

फिदा थे तुमपे पहले , फिदा है तुमपे अब तक ।
और कहूँ क्या तुमसे , क्या कहना चाहता हूँ ।


बस इसी जनम की , नही है मुझको चाहत ।
लगता है ऐसा मुझको, सदियों से चाहता हूँ ।

तू समां जाए मुझमे , मैं समां जाऊँ तुझमे ।
बस इतना चाहता हूँ , बस इतना चाहता हूँ ।


बेनाम कोहडाबाजारी
उर्फ़
अजय अमिताभ सुमन

1 comment:

  1. achcha likhtey hain aap.

    Ajay ji,blogvani-chitthajagat sites -blog agregratter hain--wahan apna blog dakhil kareeye--tabhi aap jyada se jyada logon tak apni rachnayen pahuncha sakengey--thanks-alpana

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