Tuesday, December 30, 2008

इन्तेजार

एक नन्ही सी गुडिया थी , एक नन्हा सा गुड्डा था ।
रुनझुन पायल छनकाती ये , वो हौले साज सजाता था ।

इनके खेल की अजब कहानी , बनती ये परियों की रानी ।
बोने आते खूब शोर मचाते , ये उनको मार भागता था ।

ना जात पता था नन्हे को , ना जात पता था नन्ही को ।
जब मिलते भर मन मिलते , की जग सारा हँस पड़ता था ।

फिर वही हुआ जो होता है , की दोनों को फटकार लगी ।
तब जाके उनको पता लगा , ये लड़की थी वो लड़का था ।

पढने को घर वो छोड़ चला , उसने पूछा कब आओगे ।
आँखों से कहा था नन्हे ने , जब भी दिल से तुम बुलाओगे ।

बीत गए बरसों बरसो अब , दोनों के है अपने संसार ।
फिर नन्हे को भुला नही , की लौट के कब तुम आओगे ।

ये बात पता है इसको भी , की मिल के मिल नही सकते ।
गैर नही है दोनों फिर , अपना भी तो कह नही सकते ।

कभी मिलेंगे दोनों फिर , इसका इसको एतबार है ।
ऐ रब तुही जाने फिर , ये कैसा इन्तेजार है ।
ये क्यूँ इन्तेजार है ।

बेनाम कोहडाबाजारी

उर्फ़
अजय अमिताभ सुमन




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