Tuesday, January 3, 2012

अन्ना हजारे बनाम संसद कि गरिमा


आज एक मित्र से मेरी बातचीत हो रही थी . अन्ना हजारे के बारे में चर्चा शुरू हुई तो उन्होंने कहा कि अन्नाजी ने जो मुद्दे उठाये है वो तो ठीक है , पर इस आंदोलन का भारतीय जनतंत्र पर नकारात्मक असर हो सकता है . उनका विचार था कि अन्ना हजारे ने एक परम्परा को जन्म दिया है जिससे सरकार के खिलाफ जनता के रोष का इस्तेमाल कर संसद पर तानाशाही की जा सकती ही .



दोस्तों  इस परिप्रेक्ष्य में मुझे एक कहानी याद आती है :-



“एक बच्चे को मिठाई खाने कि बुरी आदत थी . बहुत ज्यादा मिठाई खाने के कारण उसका पेट खराब हो गया था . चिकित्सक ने सलाह दी कि वो मिठाई खाना छोड़ दे . उसकी माँ ने लाख कोशिश कि परन्तु असफल हो गयी . किसी ने बच्चे की माँ को सलाह दी कि गुरुनानक साहब बहुत बड़े संत है , उनकी बात का बड़ा असर होता है . अगर गुरुनानक साहब चाहेंगे तो आपका बच्चा इस व्यसन से मुक्त हो जागेगा .



डूबते को तिनके का सहारा . बच्चे की माँ गुरुनानक जी पास अपने बच्चे को ले गयी और उनसे प्रार्थना की कृपा करके मेरे बेटे को मिठाई खाने के व्यसन से मुक्त करा दे . गुरुनानक जी ने कहा माता एक महीने बाद आओ .



माँ एक महीने बाद फिर गुरुनानकजी के पास अपने बच्चे को ले गयी . गुरुनानकजी ने कहा माताजी अभी समय नहीं हुआ , एक महीने बाद आओ .



माँ एक महीने बाद फिर गुरुनानकजी के पास अपने बच्चे को ले गयी . गुरुनानकजी ने कहा माता थोड़ा समय और दे दो . एक महीने के बाद आओ .



बच्चे की माँ परेशान थी बच्चे की तकलीफ से , फिर भी गुरुनानकजी की महिमा पे पूरा भरोसा था . एक महीने के बाद फिर अपने बच्चे को फिर ले गयी .



आश्चर्य , गुरुनानकजी ने बच्चे को कहा बेटा मिठाई खाना बुरी बात है , इसे छोड़ दो . उनकी बात का बच्चे पे इतना असर हुआ कि बच्चे ने मिठाई खाना छोड़ दिया .



बच्चे कि माँ ने पूछा यदि इतनी सी बात थी तो आपने तीन महीने क्यों लगाये . ये बात आप तीन महीने पहले भी कह सकते थे .



गुरुनानक जी ने कहा मेरे मन में मिठाई के प्रति आकर्षण था . मेरी बात का असर तब तक नहीं होता , जब तक मेरे मन में मिठाई के प्रति लोभ था . मुझे इस लोभ से मुक्त  होने में तीन महीने लगे .”



अर्थात जबतक आपकी कथनी और करनी में सामंजस्य नहीं होता , आपकी बात का औरों पे असर नहीं हो सकता .



इस कहानी का सन्दर्भ ये है कि अन्ना हजारे हर कोई नहीं बन सकता . उन्होंने सच्चाई, ईमानदारी और सादगी को अपने जीवन में जिया है . यही कारण है कि अन्ना हजारे जैसे हीं आदमी को जनता का समर्थन मिल सकता है . उनके जैसा आदमी हीं एक भ्रष्टाचार मुक्त समाज की परिकल्पना कर उसकी क्रियान्वन में जनता का सहयोग पा  सकता है . मेरे , आपके या हर कर किसी के कहने से आंदोलन कि शुरुआत नहीं हो सकती .  हालाँकि मैं इस बात से सहमत हूँ की अन्नाजी अपने बातों को मनवाने के लिए थोड़ा जिद दिखा रहें है , अन्नाजी को थोड़ा लचीलापन दिखाना चाहिए . पर इस बात से असहमत हूँ  कि अन्ना हजारे ने ऐसी परम्परा  कि शुरुआत कि है जिससे कि संसद कि गरिमा पे आंच पहुचेगी . अन्ना जैसा आदमी करोड़ो में एक पैदा होता है . मेरे कहे भारतीय जनतंत्र में एक स्वस्थ परम्परा की शुरुआत हो चुकि है जहां पे संसद निरंकुश होने के अवगुण से बचेगी . अगर विपक्ष अपनी भूमिका को ठीक ढंग से नहीं निभा पाता है तो उन परिस्थितियों में भी संसद को जनता को आवाज को सुनना पड़ेगा. अपनी बात को संसद तक पहुँचाने के लिए ये जरुरी नहीं कि आप संसद के सदस्य ही बने . संसद आम आदमी का प्रतिनिधि है और उसे आम आदमी कि आवाज के अनुरूप कि काम करना चाहिए .



अजय अमिताभ सुमन

उर्फ

बेनाम कोहड़ाबाज़ारी

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