Monday, October 31, 2011

मैं अनेक हूँ



 





सड़क पे एक्सीडेन्ट में लोगो को मरते देख
डरने वाला आदमी ,

ऑफिस में लेट पहुँचने के डर से
सड़क पे सरपट दौड़ लगाने वाला आदमी .

ऑफिस में अपने से छोटे स्टाफ को
झूठ बोलने पे गाँधी का लेक्चर देने वाला आदमी ,
और घर पे पडोसी को एवोइड करने के लिए
बेटे से झूठ कहलवाने वाला आदमी .

बेटे को टी वी से चिपक कर क्रिकेट देखने पे
जोर से डपटने वाला आदमी ,
और ऑफिस से लौटते वक्त एक दुकान के सामने खड़े हो
मिनटों क्रिकेट का लुत्फ़ उठाने वाला आदमी .

कोर्ट में क्लर्क के एक्स्ट्रा पैसे मांगने पे
झुंझलाने वाला आदमी ,
और रोड पे एक का सिक्का मिलने पे
चुपचाप जेब में रखने वाला आदमी .

सुबह जल्दी उठने का निश्चय कर
रात को जल्दी सोने वाला आदमी ,
और सुबह थोड़ा और थोड़ा और कर
देर से उठकर झुंझलाने वाला आदमी .

मैं अनेक हूँ .



अजय अमिताभ सुमन
उर्फ
बेनाम कोहड़ाबाज़ारी

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