Monday, May 16, 2011

प्रभु दर्शन




















इन आँखों का दर्शन कैसा

देह अगन नयनों पे भारी.
इन कानों का श्रवण कैसा
मनोरंजन  कानों    पे हावी.

चरण   स्पर्श करूँ मैं कैसे
वसनयुक्त   कर  स्पन्दन.
इर्ष्याग्रस्त है मेरी जिह्वा
कैसे   करूं    मैं प्रभु नमन.

तेरे    वास     को     पहचानू   मैं
नहीं घ्राण मेरी ऐसी विकसित.
चाह    अनंत    मन   भागे पीछे
बोध   दोष    व्यसनों से ग्रसित.

राह   मेरा   पर  बाधा प्रभु
मन का रचा हुआ संसार.
पथिक मैं और मंजिल तू
जाऊं   कैसे   मन    के पार.

मन   मेरा    संसार   प्रक्षेपित
नमन,कथन,वचन अस्वस्थ.
चाह “बेनाम” दर्शन हो तेरा
प्रभु   बिन    इन्द्रिय     अस्त्र.


अजय अमिताभ सुमन
उर्फ
बेनाम कोहड़ाबाज़ारी









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