Saturday, March 5, 2011

निढाल


























पूछा शराबी से मैं



है गम तुझे किस बात का ,


डूबा हुआ है अब तक


तू किस ख्याल में .



ज़माने की चाल से


परेशां मैं उम्र भर ,


फसाँ हुआ था अबतक ,


मुश्किल जंजाल मैं .



ज़माने की बातें भी


कहाँ कभी सुलझी है ,


अपनी हीं बातों में


दुनियां ये उलझी है .



तलाशते तलाशते


जवाब इस दुनियाँ का ,


बन गया था अक्सर


खुद हीं सवाल मैं .



होश में भी होकर


क्या करती ये दुनियाँ ,


क्या कहती ये दुनियाँ


क्या सुनती ये दुनियाँ .



कभी औरों पे हँसती है


कभी अपनों पे रोती है


रहा इसके तरीकों से


मैं बवाल में.



कि होश में रहकर भी


करना क्या काम है ,


झूठी मुठी बातें हीं


करती आवाम हैं .



बेहोशी में यारों


मजा है जन्नत का .


छोड़ो भी फँसे हो क्यों


इस मायाजाल में .



तेरी बातें मेरे


समझ के नाकाबिल है ,


जाहिल से लोग मुझे


कहते फिर जाहिल है .



बेनाम एक अर्ज है


गर निभ गयी है दुश्मनी तो


छोड़ दो अब जैसे भी


हूँ खुश फिलहाल मैं .



अजय अमिताभ सुमन



उर्फ


बेनाम कोहड़ाबाज़ारी



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