बुजुर्गों के संग
धुले मन का उमंग .
खेलो होली ऐसे
जैसे कोई सत्संग .
जैसे कोई सत्संग
कि अबीर ही है आस.
डालो संभल के जरा
दुःख रही है नाक.
दुःख रही है नाक
कि करो बस प्रणाम .
रंग को तो दूर से ही
राम राम भाई राम राम .
अजय अमिताभ सुमन
उर्फ
बेनाम कोहड़ाबाज़ारी
No comments:
Post a Comment